चुकी हम जानते हैं की आवेश का पृष्ठ घनत्व उसके सतह या पृष्ठ क्षेत्रफल के व्यूतक्रमानुपाती होता है इसका अर्थ यह होता है की जहाँ पर क्षेत्रफल कम वहाँ आवेश का घनत्व ज्यादा होगा।
आवेश का घनत्व ज्यादा होने का मतलब वाहाँ पर आवेश की मात्रा अधिक है। घनत्व संख्या या मात्रा को प्रदर्शित करता है।हम यह भी कह सकते हैं की जाहा पर वक्रता त्रिज्या कम है वाहाँ पर आवेश का घनत्व अधिक होगा यानि की नुकिले भाग का वक्रता त्रिज्या का कम होता है इसलिए इसलिए नुकिले भाग पर आवेश का घनत्व अधिक होगा अर्थात नुकिले भाग पर आवेश अधिक मात्रा मे होंगे।
अब चुकी नुकिले भाग पर आवेश की संख्या अधिक होने के कारण यहाँ पर मुक़्त इलेक्ट्रॉनो की संख्या बहुत ज्यादा होगा।
मुक्त इलेक्ट्रान को हल्का सा भी ऊर्जा मिलेगा वो गतिशील हो जायेंगे।जैसे हीं आसपास के वातावरण से हवा और धूल के कण अपनी ऊर्जा के साथ उस नुकिले भाग से टकराएंगे, नुकिले भाग से तुरंत मुक्त इलेक्ट्रान हवा और धूल कण के साथ गति कर जाते हैं अर्थात् हवा के साथ चले जायगे।अब हवा और धूल के कण आवेशित है मुक्त इलेक्ट्रान के द्वारा जिसपे ऋणात्मक आवेश होता है और नुकिले भाग मे भी मुक्त इलेक्ट्रान पर ऋणात्मक आवेश हैं।
इन दोनो यानि की हवा और नूकिले भाग पर समान प्रकृति के आवेश होने के कारण ये एक दूसरे को प्रतिकर्षित करने लगेंगे जिससे हवा या धूल कण प्रतीकर्षित होकर दूर चला जायेगा और वाहाँ पर दूसरे हवा या धूल के कण आ जायेंगे और नुकिले भाग पर भी दूसरे हिसे से मुक्त इलेक्ट्रान आ जायँगे।
इसी प्रकार हवा या धूल के कण नुकिले भाग से आवेश को ग्रहण करता जायेगा और नुकिले भाग आवेश को त्यागता जायेगा यह क्रिया लगातार चलती रहेगी जब तक की नुकिले भाग से पूरा का पूरा आवेश खत्म नहीं हो जाता है।
अर्थात् नुकिला भाग वाला चालक जब तक पूरी तरह अनावेशित(Discharge) नहीं हो जाता है।तब तक यह प्रक्रिया चलती रहती है|
इसी अनावेशित होने की प्रक्रिया को नुकिले भाग से अनावेशन कहा जाता है।
इसका उपयोग वान डी ग्राफ जनित्र में कणों को त्वरित करने में किया जाता है|