आप सभी का हमारे ब्लॉग vijayhelp.com में बहुत बहुत स्वागत है आज के इस ब्लॉग में चाणक्य नीति की बातें करेंगे|
चाणक्य कौन थे (Who was chankya)
चाणक्य एक प्राचीन भारतीय पॉलीमैथ(Polymath) थे जो एक शिक्षक, लेखक, रणनीतिकार, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद और शाही सलाहकार के रूप में सक्रिय थे।(source:wikipedia) चाणक्य का जन्म कब हुआ था? चाणक्य का जन्म लगभग 350 ईसा पूर्व हुआ था|
चाणक्य नीति: चाणक्य नीति की बाते हिंदी में Chankya Niti ki baaten hindi me
अध्याय -1
- “मुर्ख शिष्य को उपदेश देने , दृष्ट-व्य्बिचारिणी स्त्री का पालन पोषण करने, धन के नष्ट होने तथा दुखी यक्ति के साथ व्यवहार रखने से बुद्धिमान व्यक्ति को काफी कष्ट उठाना पड़ता है|”
- “दुष्ट स्वाभाव वाली, कठोर वचन वाली, दुराचारिणी स्त्री और धूर्त, दुष्ट स्वाभाव वाला मित्र, सामने बोलने वाला मुहफट नौकर और ऐसे घरो में निवास जहाँ सांप के होने की संभावना हो, ये सब मृत्यु के सामान है||”
- “किसी कष्ट अथवा आपातकाल से बचाव के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए और धन खर्च करके भी स्त्री की रक्षा करनी चाहिए, परन्तु स्त्रियों और धन से भी अधिक आवश्यक है की व्यक्ति अपनी रक्षा करे ||”
- “आपातकाल के लिए धन के रक्षा करनी चाहिए,लेकिन सज्जन पुरशो के पास विपति का क्या का| और फिर लक्ष्मी तो चंचल है, वह संचित करने पर भी नष्ट हो जाती है||”
- “जिस देश में आदर-सम्मान नहीं और न हिन् आजीविका का कोई साधन है, जहाँ कोई बंधू-बांधव, रिश्तेदार भी नहीं तथा किसी पराक्र की विद्या और गुण की प्राप्ति की संभावना भी नहीं, ऐसे देश को हिं छोड़ देना चाहिए|ऐसे स्थान पर रहना उचित नहीं||”
- जहाँ क्षेत्रीय अर्थात वेद को जानने वाला ब्राहण,धनिक, राजा,नदी और विद्या ये पांच चीजे न हों, उस स्थान पर मनुष्य को एक दिन भी नहीं रहना चाहिए||
- किसी रोग से पीड़ित होने पर, दुःख आने पर, अकाल पड़ने पर, शत्रु की ओर से संकट आने पर, राज सभा अथवा किसी की मृत्यु के समय जो व्यक्ति साथ नहीं छोड़ता, वास्तव में सचा बंधू माना जाता है||
- “काम लेने और नौकर-चाकरों की, दुःख आने पर बंधु-बांधवों की, कष्ट आने पर मित्र का तथा धन नाश होने पर अपनी पत्नी की वास्तविकता का ज्ञान होता है||
- जो मनुष्य निश्चित को छोडकर अनिश्चित के पीछे भागता है,उसका कार्य या पदार्थ नष्ट हो जाता है||”
- “बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए की वह श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न हुयी कुरूप अर्थात सोंदर्यहिन् कन्या से विवाह कर ले, परन्तु नीच कुल में उत्पन्न हुयी सुन्दर कन्या से विवाह न करे|”
- “विवाह अपने समान कुल में हिन् करना चाहिए||”
- “बड़े-बड़े नाखुनो वाले शेर और चीते आदि प्राणियों,विशाल नदियों, बड़े-बड़े सिंग वाले सांड आदि पशुओ, शसत्र धारण करने वाले स्त्रियों तथा राजा से सम्बंधित कुल व्यक्तियों का विश्वास कभी नही करना चाहिए||”
- “पुरुषो की अपेक्षा स्त्रियों का आहार अर्थात भोजन दोगुना, बुद्धि चौगुना, साहस छह गुना और कामवासना आठ गुना होता है|”
अध्याय-2
- झूठ बोलना,बिना सोचे समझे किसी कार्य को प्रारंभ कर देना, दुस्साहस करना,छलकपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्र रहना और निर्दयता-ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं|
- भोजन के लिए अच्छे पदार्थो का मिलना, उन्हें खाकर पचाने की शक्ति होना सुन्दर स्त्री का मिलना, उसके उपभोग के लिए कामशक्ति होना, धन के साथ-साथ दान देने की इच्छा होना-ये बातें मनुष्य को किसी महान तप के कारण प्राप्त होती हैं||
- “जिसका बेटा वश में रहता है, पत्नी पति की इच्छा के अनुरूप कार्य करती है और जो व्यक्ति धन के कारण पूरी तरह संतुष्ट है, उसके लिए पृथ्वी हिं स्वर्ग के सामान है|”
- पुत्र उन्हें हिन् कहा जा सकता है जो पिता के भक्त होते हैं पिता भी वही है जो पुत्र का पालन पोषण करता है , मित्र वही है जिसपर विश्वाश किया जा सकता है, भार्या अर्थात पत्नी भी वही है जिससे सुख की प्राप्ति हो “
- ” पुत्र उन्हें हिन् कहा जा सकता है जो पिता के भक्त होते हैं”
- ” पिता भी वही है जो पुत्र का पालन पोषण करता है” ,
- “मित्र वही है जिसपर विश्वाश किया जा सकता है”
- “भार्या अर्थात पत्नी भी वही है जिससे सुख की प्राप्ति हो “